ज़िन्दगी कितनी खुबसूरत होती, |
अगर तेरी चाहत अधूरी ना होती,
कुछ उलझाने कुछ मजबूरियां होती बेशक,
मगर प्यार में इतनी दूरियां ना होती….....
अपनी आखों के समुंदर मैं उतर जाने दे
तेरा मुजरिम हूँ , मुझे डूब के मर जाने दे
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको
सोचता हूँ कहूं तुझसे , मगर जाने दे …
`
आरज़ू झूठ है ,
आरज़ू का फरेब खाना नहीं. ..
खुश जो रहना हो ज़िन्दगी में तुम्हे ..
दिल कभी किसी से लगाना नहीं .
`
एक पल में जो आ कर गुजर जाए
यह हवा का वोह झोका है ..और कुछ नहीं
प्यार कहती है दुनिया जिसे ,
एक रंगीन धोखा है .. और कुछ नहीं ..
`
आस्मां भी बरस रहा है ,
मेरे अश्को से टकरा रहा है ,
किस्मे है जोर ज्यादा शायद यह देख रहा है ,
बरसात तो फिर भी रुक जाएगी,
मेरे अश्को का कोई अंत नहीं ,
दिल में है दर्द इतने जिसका कोई हिसाब नहीं …
`
या खुदा माफ़ करना तेरे इस गुनेहगार बन्दे को ,
जो तुम्हारी चमत्कार में दाखिल होता है ,
सिर्फ ये पूछने के लिए आया हु में ,
के क्यूँ हर रात तन्हाई में मेरा दिल रोता है …
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मेरे दर्द-ऐ-दिल की थी वो दास्ताँ
जिसे हँसी में तुमने उड़ा दिया
जिससे बच रहा था मै संभल संभल कर,
वो दर्द आज फ़िर तुमने जगा दिया.
मुझे प्यार का शौक न रहा
मेरे दोस्त भी है सब बेवफा
जो करीब आए तो ज़िक्र हुआ
जो दूर हुए तो भुला दिया.
वो जो मिलते थे कभी रात में
गिले होते थे उनकी हर बात में
न वो दिल रहा न वो दोस्त रहा
मेरे ख़्वाबों को भी सुला दिया.
वो तो कहते थे हर बात में
की हम बसते हैं उनकी याद में
मैं न जान सकूँगा ये कभी
क्यूँ मुझको दिल से भुला दिया......!!
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जान देके हमने दिल को सँभाला है यहाँ पर
कुछ ऐसे उसकी याद को टाला है यहाँ पर
अब सोचते हैं मौत में ही चैन पायेंगे
कुछ मार ज़िंदगी ने यूँ ड़ाला है यहाँ पर
दम घुट रहा था मेरा अंधेरों में प्यार के
दिल में ग़मों का ही तो उजाला है यहाँ पर
मरने के इंतेज़ार में जीते हैं देखिये
कैसा ग़ज़ब ये खेल निराला है यहाँ पर
बस याद कर रहा हूँ मै जलवा-ए-यार को
बे-बादा मस्तियों को यूं पाला है यहाँ पर
ऐ नाख़ुदा तू साहिलों से दूर रख मुझे
हर शख़्स वहाँ ड़ूबने वाला है यहाँ पर
इतना नहीं था लाल ये रंगेहिना कभी
मसल किसी का दिल कहीं ड़ाला है यहाँ पर
ना चाँद ही ड़ूबा कहीं ना ही हुई है रात
‘ललित’ तेरा ही दिल है जो काला है यहाँ पर
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तुम्हारी याद आने पर आँसू टूट जाते है
उन्हें मैं हथेलियों पर समेट लेता हूँ
और जो अटक जाते हैं होंटों पर
तो मैं समझ लेता हूँ कि वो तुम हो !
सुबह-सुबह ठंडी हवा का झोंका
मुझे चुपके से आकर छूता है
और उसमें जो सबसे तेज़ झोंका हो
तो मैं समझ लेता हूँ कि वो तुम हो !
बिछड़ने के बाद से ही तुम्हारी याद आती है
तुम्हारी याद में जब मेरा दिल रोता है
रोते-रोते जो ज़ोर की हिचकी आती है
तो मैं समझ लेता हूँ कि वो तुम हो.......!
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कहने को कह गए कई बात ख़ामोशी से
कटते-कटते कट ही गई रात ख़ामोशी से
न शोर-ए-हवा, न आवाज़-ए-बर्क़ कोई
निगाहों में अपनी हर दिन बरसात ख़ामोशी से
शायद तुम्हें ख़बर न हो लेकिन यूँ भी
बयाँ होते हैं कई जज्बात ख़ामोशी से
दिल की दुनिया भी कितनी ख़ामोश दुनिया है
किसी शाम हो गई इक वारदात ख़ामोशी से
माईले-सफर हूँ, बुझा-बुझा तन्हा-तन्हा
पहलू में लिए दर्द की कायनात ख़ामोशी से
मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता
सरकती गई हयात ख़ामोशी से
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कहने को कह गए कई बात ख़ामोशी से
कटते-कटते कट ही गई रात ख़ामोशी से
न शोर-ए-हवा, न आवाज़-ए-बर्क़ कोई
निगाहों में अपनी हर दिन बरसात ख़ामोशी से
शायद तुम्हें ख़बर न हो लेकिन यूँ भी
बयाँ होते हैं कई जज्बात ख़ामोशी से
दिल की दुनिया भी कितनी ख़ामोश दुनिया है
किसी शाम हो गई इक वारदात ख़ामोशी से
माईले-सफर हूँ, बुझा-बुझा तन्हा-तन्हा
पहलू में लिए दर्द की कायनात ख़ामोशी से
मुट्ठी में रेत उठाये चला था जैसे मैं
आहिस्ता-आहिस्ता
सरकती गई हयात ख़ामोशी से